नेता के जीवन में शिक्षा का महत्व

[वाचनकाल : ४ मिनट] 
pile of books, symbolic education
नेता सिर्फ पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है बल्कि देश के लिए इस ज्ञान का उपयोग हो यह जिद उस से काम करवाएगी। 

देश जब तरक्की की राह पर हो तब तो कोई बात नही मगर जब देश की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो रही हो या फिर प्रशासन की गडबडी नागरिकों के जीवन बर बुरा असर स्थापित कर रही हो तब देश कौन चला रहा है यह बात महत्वपूर्ण बन जाती है। सीधी सी बात है लोकशासित प्रदेशों में सत्ताधारी नेता जवाब देय होता है। तो हमारा भविष्य किसी पढे-लिखे जानकार आदमी के हात में हो ऐसा मतदाता क्यों न चाहे भला? लेकिन ‘न्यू इंडिया’ में मतदाता की ये चाहत ही उस के जान पे आफत बनती हुई नजर आती है . . .

हाल ही में ‘अनॲकेडेमी’ (Unacademy) नामक ऑनलाइन पढाने वाली संस्था के एक शिक्षक को इस वजह से काम से निकाल दिया गया कि उसने विद्यार्थियों से कहा, ‘सिर्फ पढ़े-लिखे नेताओं को हमें चुनना चाहिए’!
वैसे तो यह बात बड़े बहस का मुद्दा है। अगर आप पढ़े-लिखे होने के फायदे गिनाओगे, तो कुछ लोग ऐसे भी उदाहरण प्रस्तुत करेंगे जिन लोगों ने पढ़े-लिखे ना होने के बावजूद – या कम पढ़े होने के बावजूद – जिंदगी में कामयाबी हासिल की है। यह बिलकुल सच है कि कामयाबी का शिक्षा से कोई गहरा संबंध नहीं है। आज कल हम देख सकते हैं अपने पढ़े-लिखे युवाओं के हाल . . . बेचारे दस-बिस हजार की नौकरी तक को तड़प रहे हैं! लेकिन किसी भी देश का नेता होना यह बात सिर्फ कामयाबी से ताल्लुक नहीं रखती। एक नेता समाज को और पर्यायी रूप से देश को आगे ले जाने की कोशिश करता है। अगर उसे अपने समाज और देश के बारे में ठीक से पता ही ना हो, तो वह क्या करेगा?
आप कहोगे कि इसमें भी शिक्षा कहां से आई? बिना स्कूल गए क्या हम अपने समाज या देश को समझ नहीं सकेंगे? तो देखिए फर्क ऐसा है के खेती हम भी करते हैं और खेती चीन या अमेरिका के किसान भी करते हैं। लेकिन खेत की उपज में वह हम से बहुत आगे है। जिस का कारण खेती के बारे में आधुनिक ज्ञान का होना ही है।
एक बिना पढ़ा-लिखा नेता समाज या देश से रूबरू हो सकता है; अगर सही कोशिश करें तो समझ भी सकता है, लेकिन इस देश के हालातों पर क्या सही उपाय है, यह जानना ऐसे नेता के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। इस का भी कारण है – ज्ञान का अभाव।
तो क्या हमारा जीवन हमें कोई ज्ञान नहीं देता? क्या हम अनुभव से कुछ नहीं सिखते? जरूर हम अनुभव से सिखते है मगर इस की भी कुछ मर्यादाएं है। जो हमें स्कूल, कॉलेज (और उस से भी आगे पढ़ाई करते वक्त) नहीं रहती। अगर जवाब ढूंढने की सच्ची चाहत हो तो पढ़ने-लिखने से, ज्ञान की प्राप्ति करने से आप को मार्ग जरूर दिखेगा।
तो अब दूसरा सवाल – क्या पढ़ा-लिखा नेता हमारे देश को जरूर सफल कराएगा? आज हमारे मंत्रिओं को देखा जाए, या फिर सांसदों को देखा जाए तो उनमें बहुत से पढ़े-लिखे हैं फिर भी देश का यह हाल है। इस की गारंटी तो कोई नहीं देगा कि पढ़ा-लिखा नेता देश को सफल कराएगा। वैसे दिमाग तो हम सभी के पास होता है लेकिन इसे इस्तेमाल करने की चाहत, और सही चीज के लिए इस्तेमाल करने की चाहत, होगी तो ही यह दिमाग आप का फायदा कराएगा। उसी तरह नेता सिर्फ पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है बल्कि देश के लिए इस ज्ञान का उपयोग हो यह जिद उस से काम करवाएगी।
तो सवाल फिर से यही बनता है कि आम लोग कैसे जाने की किस के मन में यह जिद है और किस के मन में नहीं? सिर्फ पढ़े-लिखों को चुनना इस से सबकुछ सही तो नहीं हो जाता। ‘संविधान सभा’ में यही बहस बहुत दिनों तक चली। उस समय देश की सिर्फ पंधरह फ़ीसदी आबादी साक्षर थी। अगर सिर्फ पढ़े-लिखो को चुनने का नियम बनता तो देश की सत्ता गिने-चुने लोगों के हाथों में रह जाती। इसलिए सभी को राजनीति के द्वार खुले रखे गए!
लेकिन इस इक्कीसवीं सदी में अगर कोई नेता पढ़ा लिखा ना हो तो यह वास्तव उस का गैर जिम्मेदाराना आचरण दर्शाता है। आज अगर हमें कामयाब होना है या कुछ कर दिखाना है तो शिक्षा सब से जरूरी माध्यम है। यह एक आम सोच है। अगर कोई व्यक्ति शिक्षा को महत्व ना दे रहा हो तो वह अपनी उन्नति के द्वार बंद कर रहा है।

कुछ गिने-चुने नाम मिल सकते है जो बिना पढ़े-लिखे भी बड़े व्यापारी या फिर कलाकार बन गए लेकिन मैं बात उन करोड़ों की कर रहा हूं जिन के नसीब में मजदूरी ही है। और यहां बात हो रही है – प्रशासन की! आप को कोई गीत नहीं गाना, या फिर आप को कोई दुकान नहीं चलानी जहां कुछ बातें भी आप को आगे ले जाए। प्रशासन बड़ी जिम्मेदारी का काम है। अगर आप को निर्णय लेना हो, तो उस मामले की जानकारी, उस का ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक बात है। वैसे तो नेताओं के नीचे बहुत से पढ़े-लिखे अफसर होते हैं जो उन्हें सूचना देते हैं। लेकिन फिर नेताओं का क्या महत्व रह गया, अगर वह दूसरों के सूचनाओं का ही अमल करें?
अगर हम यह ठान लेते हैं के सिर्फ पढ़े-लिखे लोगों को ही हम चुनाव जीतवाएंगे तो एक तरह से हम देश में शिक्षा के महत्व को और विस्तार से नेताओं और जन समुदायों के सामने रख पाएंगे। आज का एक छोटा सा बदलाव शायद हमें सुनहरे भविष्य की ओर ले जाए!


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